आसां नहीं है अशियाना बनाना
चंद ईंटें जोडी और बस गारा साना।
इतना भी आसां नहीं है अशियाना बनाना।
कुछ राख होते हैं, कुछ खाक होते हैं
सपनों को हम यूं ही दिन रात ढोते हैं
फकत यही है इन मुश्किलों का फसाना
चंद ईंटें जोडी और बस गारा साना।
इतना भी आसां नहीं है आशियाना बनाना।
कभी अपनों के दरमियां दीवार खींचती है
कभी अपने ही घर की दीवार दरकती है
इंसानी दुनिया में शैतानी आग दहकती है
चाहती हैं उम्मीदों का मकान जलाना।
चंद ईंटें जोडी और गारा साना।
इतना भी आसां नहीं है आशियाना बनाना।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें