बुधवार, 30 जनवरी 2013




आसां नहीं है अशियाना बनाना

 
चंद ईंटें जोडी और बस गारा साना।
इतना भी आसां नहीं है अशियाना बनाना।
कुछ राख होते हैं, कुछ खाक होते हैं
सपनों को हम यूं ही दिन रात ढोते हैं
फकत यही है इन मुश्किलों का फसाना
चंद ईंटें जोडी और बस गारा साना।
इतना भी आसां नहीं है आशियाना बनाना।
कभी अपनों के दरमियां दीवार खींचती है
कभी अपने ही घर की दीवार दरकती है
इंसानी दुनिया में शैतानी आग दहकती है
चाहती हैं उम्‍मीदों का मकान जलाना।
चंद ईंटें जोडी और गारा साना।
इतना भी आसां नहीं है आशियाना बनाना।

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