मशाल जलाओ तो सही
उठो मिलकर सभी कोहराम मचाओ तो सही।
जो सोये हैं जाकर उन्हें जगाओ तो सही।
अंधेरा खुद ब खुद मिट जाएगा डरते क्यूं हो,
मशाल एक बार फिर से जलाओ तो सही।
वो स्याह इरादे और दिल में शोलों की अगन
पिघलेगा उसका गुरुर जरा इन्हें धधकाओं तो सही।
जिंदगी भर उठाए हैं मुसीबतों के पहाड,
किस्मत का लिखा कुछ नहीं होता ऐ मुकुंद
अपने हाथों को हथियार बनाओ तो सही।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें